मुंबई, 03 जून, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य सरकार द्वारा पारित दो बिलों को आखिरकार मंजूरी दे दी है, जिससे करीब 12,000 से अधिक दिव्यांगजनों को शहरी और स्थानीय निकायों में नामांकन का अधिकार मिलेगा। ये बिल लंबे समय तक राजभवन में अटके हुए थे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस फैसले पर कहा कि यह मंजूरी आनी ही थी और राज्यपाल इस बात से घबराए हुए थे कि अगर बिलों को और रोका गया तो वे सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु के राज्यपाल और सरकार के बीच जारी विवाद पर राज्यपाल के अधिकार की सीमा तय करते हुए कहा था कि उनके पास वीटो पावर नहीं है। कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा दस जरूरी बिलों को रोकने को अवैध करार दिया था और कहा था कि यह कदम मनमाना और कानून के खिलाफ है। अदालत ने राज्यपाल को निर्देश दिया था कि वे विधानसभा में पास हुए बिलों पर एक महीने के भीतर कार्रवाई करें। इस मामले में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि राज्यपाल आरएन रवि ने कई जरूरी बिलों को जानबूझकर रोक रखा है। पूर्व आईपीएस अधिकारी और केंद्रीय जांच ब्यूरो में काम कर चुके आरएन रवि ने 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल का पद संभाला था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को दो स्पष्ट निर्देश भी दिए थे कि वे तय समय सीमा के भीतर बिलों पर अपना विकल्प चुनें और मंत्रिपरिषद की सलाह लेकर ही बिलों को राष्ट्रपति के पास भेजें या मंजूरी दें। साथ ही यदि विधानसभा बिल को फिर से पास कर भेजती है, तो राज्यपाल को उसे एक महीने के अंदर स्वीकार करना होगा। अदालत ने यह भी साफ किया कि वे राज्यपाल की शक्तियों को कम नहीं कर रहे, पर उनकी सभी कार्रवाइयां संसदीय लोकतंत्र के नियमों के अनुरूप होनी चाहिए।
तमिलनाडु सरकार ने नवंबर 2023 में एक विशेष सत्र में ये बिल दोबारा पारित किए थे, क्योंकि राज्यपाल ने बिना कारण बताए पहले 12 में से 10 बिलों को विधानसभा में वापस लौटा दिया था और 2 बिल राष्ट्रपति को भेज दिए थे। इस विवाद के कारण मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था, जहां राज्य सरकार ने राज्यपाल के इस रवैये को गैरकानूनी बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को बातचीत के लिए कहा था। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताया और कहा कि यह न केवल तमिलनाडु बल्कि पूरे देश की राज्य सरकारों की जीत है। उन्होंने विधानसभा में कहा था कि राज्यपाल ने जानबूझकर बिलों को मंजूरी देने में देरी की, जबकि संविधान स्पष्ट है कि दोबारा पास हुए बिलों को मंजूरी देना राज्यपाल का दायित्व है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच 2021 से ही विवाद चला आ रहा है। डीएमके सरकार ने राज्यपाल पर भाजपा के एजेंडे पर काम करने और विधेयकों को रोकने का आरोप लगाया है। वहीं राज्यपाल का कहना है कि संविधान उन्हें कानूनों पर अपनी सहमति रोकने का अधिकार देता है। यह विवाद सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन तक पहुंच चुका है।