बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में गुरुवार को 18 जिलों की जनता ने ऐतिहासिक उत्साह दिखाया। पहले चरण में रिकॉर्ड 64.69 फीसदी मतदान दर्ज किया गया, जो पिछले विधानसभा चुनाव 2020 के पहले चरण के मुकाबले 8 प्रतिशत अधिक है। 6 नवंबर को 121 सीटों पर हुए इस मतदान में कुल 2.42 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया, जो पिछले चुनाव से 36 लाख अधिक वोटर्स हैं। बिहार के चुनावी इतिहास में विधानसभा चुनाव के पहले चरण में इतनी बंपर वोटिंग पहली बार हुई है।
बंपर वोटिंग के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज
रिकॉर्ड तोड़ मतदान के बाद अब राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। हर तरफ यही सवाल उठ रहा है कि क्या जनता ने इस बार बदलाव के मूड में इतना अधिक वोट डाला है, या फिर यह नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार के प्रति समर्थन का संकेत है? भारतीय चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो, पारंपरिक रूप से भारी मतदान को अक्सर 'बदलाव की लहर' से जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि माना जाता है कि बड़ी संख्या में वे मतदाता बाहर निकलते हैं जो मौजूदा सरकार से असंतुष्ट होते हैं। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक चेतावनी देते हैं कि यह पैटर्न हमेशा सटीक नहीं होता।
चुनावी इतिहास से मिल रहे मिले-जुले संकेत
पिछले कुछ चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि बंपर वोटिंग हमेशा सत्ता परिवर्तन की गारंटी नहीं होती है। कई उदाहरण ऐसे हैं जब रिकॉर्ड मतदान के बावजूद मौजूदा सरकार ने वापसी की:
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मध्य प्रदेश (2023): 77% मतदान (पिछले चुनाव से 2.08% अधिक) के बावजूद बीजेपी सरकार ने बहुमत हासिल किया।
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ओडिशा (2014): 73.65% मतदान (पिछली बार से 8.35% अधिक) के बाद भी बीजेडी सरकार ने वापसी की।
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गुजरात (2012): 11.53% अधिक मतदान होने के बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने सत्ता बरकरार रखी।
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बिहार (2010): 6.82% अधिक वोटिंग हुई थी, जिसके बाद जेडीयू गठबंधन सरकार ने वापसी की थी।
इसके विपरीत, कई मौकों पर भारी मतदान ने सत्ता परिवर्तन का संकेत भी दिया है:
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राजस्थान (2023): 74.45% मतदान (0.39% अधिक) के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा।
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तमिलनाडु (2011): 7.19% अधिक मतदान के बाद तत्कालीन DMK गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा और AIADMK गठबंधन ने सरकार बनाई।
परिणाम 14 नवंबर को
फिलहाल यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि बिहार की जनता किस मूड में वोट कर रही है—चाहे वह एंटी-इनकम्बेंसी हो या फिर वर्तमान सरकार के सुशासन पर मुहर। मतदाताओं की उच्च भागीदारी को राजनीतिक जागरूकता की जीत के रूप में भी देखा जा सकता है। बिहार चुनाव के पहले चरण की इस बंपर वोटिंग के वास्तविक मायने क्या हैं, इसका जवाब तो 14 नवंबर को चुनाव नतीजों के बाद ही सामने आएगा।