मुंबई, 20 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। भारतीय नौसेना का बेड़ा अब एक अनोखे और ऐतिहासिक पोत से समृद्ध हो गया है। सिलकर बनाया गया 'इंडियन नेवल सेलिंग वेसल (INSV) कौंडिन्य' मंगलवार को औपचारिक रूप से नौसेना में शामिल कर लिया गया। यह समारोह कर्नाटक स्थित कारवाड़ नेवल बेस पर आयोजित किया गया, जिसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत विशेष रूप से उपस्थित रहे। इस पोत का नाम प्राचीन भारतीय नाविक कौंडिन्य के सम्मान में रखा गया है, जिन्होंने कभी हिंद महासागर पार करते हुए दक्षिण-पूर्व एशिया तक की ऐतिहासिक यात्रा की थी। नौसेना के प्रवक्ता ने बताया कि यह जहाज इस वर्ष के अंत तक गुजरात से ओमान तक के पारंपरिक समुद्री व्यापार मार्ग पर ट्रांस-ओशनिक यात्रा पर रवाना होगा। INSV कौंडिन्य की सबसे बड़ी विशेषता इसका पारंपरिक निर्माण है। आधुनिक तकनीकों से विपरीत, यह जहाज हाथ से सिले गए चौकोर पालों और स्टीयरिंग बोर्ड से युक्त है। पतवार के आविष्कार से पहले जहाजों को नियंत्रित करने के लिए स्टीयरिंग बोर्ड का ही इस्तेमाल किया जाता था। इसके पाल पर गंधभेरुंड (एक दैवीय पक्षी) और सूर्य की आकृतियाँ उकेरी गई हैं। इसके अलावा पोत के अग्रभाग (बो) पर नक्काशीदार शेर और डेक पर हड़प्पा सभ्यता की शैली में पत्थर का लंगर लगाया गया है।
इस ऐतिहासिक प्रोजेक्ट को संस्कृति मंत्रालय ने वित्तीय सहायता दी, और इसे नौसेना तथा होदी इनोवेशन के साथ मिलकर तैयार किया गया। जुलाई 2023 में सभी भागीदारों के बीच समझौता हुआ और 12 सितंबर को इसकी कील बिछाई गई। फरवरी 2025 में गोवा के होदी शिपयार्ड में इसे लॉन्च किया गया। केरल के पारंपरिक कारीगरों ने लकड़ी, नारियल के रेशों से बनी रस्सियों और सिंथेटिक सामग्री के इस्तेमाल से इस जहाज का निर्माण किया। इस परियोजना का नेतृत्व मास्टर शिपराइट बाबू शंकरन ने किया, जिनके निर्देशन में हजारों कारीगरों ने पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करते हुए यह पोत तैयार किया। इसकी प्रेरणा अजंता की एक पेंटिंग से ली गई थी, जो भारत के समृद्ध समुद्री इतिहास को दर्शाती है। यह जहाज न केवल तकनीकी रूप से बल्कि प्रतीकात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है। इसमें किसी भी पुराने ब्लूप्रिंट या अवशेष की सहायता नहीं ली गई, जिससे इसे डिजाइन और बनाना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया। नौसेना ने इसकी संकल्पना से लेकर निर्माण तक हर चरण में सक्रिय भूमिका निभाई। यह शिप विश्व में किसी भी नौसैनिक बेड़े का हिस्सा रहे पोतों से पूरी तरह अलग है। परियोजना के दूसरे चरण में इसे पारंपरिक समुद्री व्यापार मार्ग पर भेजा जाएगा और इसकी पहली यात्रा गुजरात से ओमान के लिए निर्धारित है, जिसकी तैयारियाँ जारी हैं।