मुंबई, 04 मार्च, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। रिश्वत लेकर सदन में वोट दिया या सवाल पूछा तो सांसदों या विधायकों को विशेषाधिकार के तहत मुकदमे से छूट नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने 25 साल पुराना फैसला पलट दिया। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए एस बोपन्ना, एम एम सुंदरेश, पी एस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने कहा, हम 1998 में दिए गए जस्टिस पीवी नरसिम्हा के उस फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे से छूट दी गई थी। 1998 में 5 जजों की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
कोर्ट ने कहा, अगर कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है। यह मायने नहीं रखता है कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी। आरोप तभी बन जाता है, जिस वक्त कोई सांसद घूस स्वीकार करता है। संविधान के आर्टिकल 105 और 194 सदन के अंदर बहस और विचार-विमर्श का माहौल बनाए रखने के लिए हैं। दोनों अनुच्छेद का मकसद तब बेमानी हो जाता है, जब कोई सदस्य घूस लेकर सदन में वोट देने या खास तरीके से बोलने के लिए प्रेरित होता है। आर्टिकल 105 या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट हासिल नहीं है। रिश्वत लेने वाला आपराधिक काम में शामिल होता है। ऐसा करना सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए जरूरत की श्रेणी में नहीं आता है। सांसदों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट कर देती है। हमारा मानना है कि संसदीय विशेषाधिकारों के तहत रिश्वतखोरी को संरक्षण हासिल नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, स्वागतम! सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला जो स्वच्छ राजनीति तय करेगा और व्यवस्था में लोगों का विश्वास गहरा करेगा। दरअसल, यह मामला झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के सांसदों के रिश्वत कांड पर आए आदेश से जुड़ा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा था। आरोप था कि सांसदों ने 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन देने के लिए वोट दिया था। इस मसले पर 1998 में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। अब 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया है।