22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले ने एक बार फिर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए। इस हमले के बाद भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम से एक जवाबी कार्रवाई शुरू की, जो न केवल आतंक के गढ़ों पर सीधा प्रहार था, बल्कि वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान में पल रहे आतंकवाद को बेनकाब करने की कूटनीतिक मुहिम की भी शुरुआत थी।
भारत ने अब अपने विरोध को केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रखा, बल्कि दुनिया को यह स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान की सरजमीं से संचालित आतंकी गतिविधियां सिर्फ भारत नहीं, बल्कि वैश्विक शांति के लिए खतरा हैं।
बेल्जियम से जर्मनी तक भारत का प्रतिनिधिमंडल
भारत ने इस अभियान को वैश्विक मंच पर ले जाने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया है। रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में एक प्रमुख प्रतिनिधिमंडल ने बेल्जियम की यात्रा के बाद अब जर्मनी में कदम रखा है। इस दौरे का उद्देश्य है - यूरोप को यह बताना कि आतंकवाद कोई स्थानीय समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक खतरा है, और इसके स्रोत की पहचान पाकिस्तान के रूप में की जानी चाहिए।
जर्मनी में प्रतिनिधिमंडल ने संघीय विदेश मंत्री जोहान वेडफुल से मुलाकात की। बातचीत के दौरान जर्मनी ने भारत के रुख का समर्थन करते हुए आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत साझेदारी का आश्वासन दिया।
पूर्व उप-NSA पंकज सरन की सख्त टिप्पणी
इस मौके पर भारत के पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पंकज सरन ने भी ANI से बातचीत में पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "पाकिस्तान को अब यह समझना होगा कि आतंकवाद से उसे कोई लाभ नहीं होने वाला है।"
उन्होंने कहा कि समय आ गया है जब केवल शब्दों से काम नहीं चलेगा, बल्कि अब वास्तविक कार्रवाई की जरूरत है। झूठे वादे और दिखावटी निंदा से आतंक का खात्मा नहीं होगा। उन्होंने पाकिस्तान से अपेक्षा की कि वह अपने नियंत्रण क्षेत्र से सक्रिय आतंकी संगठनों पर सख्त कार्रवाई करे।
भारत-जर्मनी रिश्तों में नई गहराई
पंकज सरन ने कहा कि अगर यूरोप में भारत का कोई सबसे मजबूत और समझदार साझेदार है तो वह जर्मनी है। दोनों देशों के बीच बढ़ते संबंध न केवल व्यापार और तकनीक तक सीमित हैं, बल्कि सुरक्षा और वैश्विक कूटनीति में भी अब एक रणनीतिक गठजोड़ बनते जा रहे हैं।
पहलगाम हमले के बाद जर्मनी ने बहुत तेजी से भारत का समर्थन किया था, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत का कूटनीतिक प्रयास रंग ला रहा है।
वैश्विक मंचों पर आतंकवाद की फंडिंग पर चर्चा
भारत के प्रतिनिधिमंडल ने जर्मनी के साथ बातचीत में यह भी सुझाया कि पाकिस्तान में चल रहे आतंकवाद की फंडिंग को कैसे रोका जाए। इसमें FATF (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स), IMF, वर्ल्ड बैंक, EU-GSP प्लस जैसी वैश्विक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। पंकज सरन ने जोर देकर कहा कि जर्मनी को इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत ने जर्मनी को कई राजनयिक कदमों के सुझाव दिए हैं जिससे पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाया जा सके।
पाकिस्तान को दो टूक संदेश
भारत की ओर से यह संदेश अब खुलकर सामने आ चुका है:
“अब शब्द नहीं, कार्रवाई चाहिए।”
यह संदेश न केवल जर्मनी और बेल्जियम के माध्यम से यूरोप को दिया गया है, बल्कि यह पाकिस्तान के लिए भी एक कड़ी चेतावनी है कि अगर वह अपने देश से आतंक को जड़ से खत्म नहीं करता, तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसे और ज्यादा अलग-थलग कर दिया जाएगा।
निष्कर्ष: भारत की आक्रामक कूटनीति की नई दिशा
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने जो रुख अपनाया है, वह केवल सैन्य या खुफिया प्रतिक्रिया तक सीमित नहीं है। यह अब एक व्यापक कूटनीतिक अभियान का हिस्सा बन गया है, जहां भारत न केवल अपने हक के लिए आवाज उठा रहा है, बल्कि दुनिया को भी आतंकवाद के प्रति जागरूक कर रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर न केवल एक सैन्य ऑपरेशन है, बल्कि यह भारत की उस नई रणनीति का प्रतीक है जिसमें “साइलेंस डिप्लोमेसी” की जगह अब “एक्टिव पब्लिक डिप्लोमेसी” ने ले ली है।
पाकिस्तान को अब तय करना होगा कि वह आतंक के साथ खड़ा रहना चाहता है या वैश्विक समुदाय के साथ।