राष्ट्रीय मिति चैत्र 08, शक संवत 1946, चैत्र कृष्ण, अमावस्या, शनिवार, विक्रम संवत् 2081। सौर चैत्र मास प्रविष्टे 16, रमजान 28, हिजरी 1446 (मुस्लिम) तदनुसार अंग्रेजी तारीख 29 मार्च सन् 2025 ई॰। सूर्य उत्तरायण, उत्तर गोल, बसन्त ऋतुः। राहुकाल प्रातः 09 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक। अमावस्या तिथि सायं 04 बजकर 28 मिनट तक उपरांत प्रतिपदा तिथि का आरंभ। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र सायं 07 बजकर 27 मिनट तक उपरांत रेवती नक्षत्र का आरंभ। ब्रह्म योग रात्रि 10 बजकर 03 मिनट तक उपरांत ऐन्द्र योग का आरंभ। नाग करण सायं 04 बजकर 28 मिनट तक उपरांत बव करण का आरंभ। चंद्रमा दिन रात मीन राशि पर संचार करेगा।
श्री सर्वेश्वर पञ्चाङ्गम् 🌞 🌕
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🚩🔱 धर्मो रक्षति रक्षितः🔱 🚩
🌅पंचांग- 29.03.2025🌅
युगाब्द - 5125
संवत्सर - कालयुक्त
विक्रम संवत् -2081
शाक:- 1946
ऋतु- बसंत
सूर्य __ उत्तरायण
मास - चैत्र
पक्ष _ कृष्ण पक्ष
वार - शनिवार
तिथि -अमावस्या 16:26:5
नक्षत्र उत्तरभाद्रपदा 19:25:44
योग ब्रह्म 22:02:24
करण नाग 16:26:57
करण किन्स्तुघ्न 26:38:34
चन्द्र राशि - मीन
सूर्य राशि - मीन
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩
👉 देव पितृ अमावस
🍁 अग्रिम पर्वोत्सव 🍁
👉 चैत्र नवरात्रि प्रारंभ
हिन्दू नव संवत्सर प्रारंभ
30 मार्च 2025 (रविवार)
👉 गणगौर पूजन
31 मार्च 2025 (सोमवार)
👉 दुर्गाष्टमी
05 अप्रेल 2025 (शनिवार)
👉 राम नवमी
06 अप्रेल 2025 (रविवार)
👉 कामदा एकादशी व्रत
08 अप्रेल 2025 (मंगलवार)
👉 प्रदोष व्रत
10 अप्रेल 2025 (गुरुवार)
👉 सत्य पूर्णिमा व्रत
श्री हनुमान जन्मोत्सव
12 अप्रेल 2025 (शनिवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉️
माया का बन्धन......!!
एक बहुत ही प्रसिद्ध महात्मा थे। उनके पास रोज ही बड़ी संख्या में लोग उनसे मिलने आते थे। एक बार एक बहुत ही अमीर व्यापारी उनसे मिलने पहुंचा। व्यापारी ने सुन रखा था कि महात्मा बड़ी ही सरलता से रहते है।जब वह व्यापारी महात्मा के दरबार में पहुंचा तो उसने देखा कि कहने को तो वह महात्मा है, लेकिन वे जिस आसन पर बैठे है, वह तो सोने का बना है, चारों ओर सुगंध है, जरीदार पर्दे टंगे है, सेवक है जो महात्माजी की सेवा में लगे हैऔर आश्रम में समस्त सुख सुविधाओं का अंबार लगा है व्यापारी यह देखकर भौंचक्का रह गया कि हर तरफ विलास और वैभव का साम्राज्य है। ये कैसे महात्मा है? महात्मा उसके बारे में कुछ कहते,इसके पहले ही व्यापारी ने कहा, “महात्माजी आपकी ख्याति सुनकर आपके दर्शन करने आया था, लेकिन यहाँ देखता हूँ,आप तो भौतिक सपंदा के बीच मजे से रह रहे हैं लेकिन आप में साधु के कोई गुण नजर नही आ रहे है।महात्मा ने व्यापारी से कहा, “व्यापारी… तुम्हें ऐतराज है तो मैं इसी पल यह सब वैभव छोड़कर तुम्हारे साथ चल देता हूँ।व्यापारी ने कहा, “हे महात्मा, क्या आप सच मे इस विलास पूर्ण जीवन को छोड़ पाएंगे?“ महात्माजी कुछ न बोले और उस व्यापारी के साथ चल दिए और जाते-जाते अपने सेवको से कहा कि यह जो कुछ भी है सभी सुख सुविधा की वस्तुओं को गरीबो में बाँट दें।
दोनो कुछ ही दूर चले होंगे कि अचानक व्यापारी रूका और पीछे मुड़ा, कुछ सोचने लगा। महात्मा ने पूछा, “क्या हुआ रूक क्यों गए?“ व्यापारी ने कहा, “महात्मा जी, मैं आपके दरबार में अपनी चप्पले भूल आया हूँ। मैं जाकर उन्हे ले आता हूँ,उसे लेना जरूरी है।”इतनी दूर नंगे पैर मै नहीं चल पाऊंगा
महात्माजी हंसते हुए बोले, “बस यही फर्क है तुममें और मुझमें। मैं सभी भौतिक सुविधाओं का उपयोग करते हुए भी उनमें बंधता नहीं,मेरे लिए संसार के समस्त पदार्थ शून्य है वे मेरे बन्धन का कारण कदापि नही बन सकते।यही मेरे महात्मा होने का प्रमाण है, इसीलिए जब चाहूँ तब उन्हें छोड़ सकता हूँ
और तुम जैसे साधारण मनुष्य इतने अमीर होकर भी चप्पलों के बंधन से भी मुक्त नहीं हो। तो फिर इस संसार सागर के रिश्ते,नाते,धन संपदा से कैसे मुक्त हो पाओगे।आओ मेरे साथ सांसारिक विरह का अभ्यास करों।इतना कहते हुए महात्माजी फिर से अपने दरबार की ओर जानें लगे और वह व्यापारी उन्हें जाता हुआ देखता रहा क्योंकि महात्मा उसे जीवन का सबसे अमूल्य रहस्य बता चुके थे l
इस छोटी सी कहानी का सारांश ये है कि चीजों का उपयोग करना, लेकिन उनके मोह में न पड़ना, यही जीवन का अन्तिम उद्देश्य होना चाहिए।क्योंकि मोह ही दु:खों का कारण है और जिसे चीजों का मोह नहीं, वह उनके बंधन में भी नहीं पड़ता और जो बंधन में नही पड़ता, वो हमेंशा मुक्त ही रहता है ।
जय जय श्री ठाकुर जी की
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा)
व्याकरणज्योतिषाचार्य
राज पंडित-श्री राधा गोपाल मंदिर
(जयपुर)