मुंबई, 16 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। देश की अदालतों में टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधाओं की खराब स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर नाराजगी जताई है। बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के 25 में से 20 हाईकोर्ट्स ने अब तक यह जानकारी नहीं दी है कि उन्होंने अदालत परिसरों में शौचालय की स्थिति सुधारने के लिए क्या कदम उठाए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि आगे भी रिपोर्ट जमा नहीं की गई, तो संबंधित हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को सुप्रीम कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 15 जनवरी 2025 को सभी हाईकोर्ट्स, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए थे कि हर अदालत परिसर में पुरुष, महिला, दिव्यांग और ट्रांसजेंडर के लिए अलग-अलग टॉयलेट होने चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा था कि उचित स्वच्छता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इस मुद्दे की सुनवाई जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच कर रही है। यह मामला वकील राजीब कलिता की जनहित याचिका से शुरू हुआ, जिसमें अदालतों में शौचालयों की बदहाल स्थिति को उठाया गया था। अब तक केवल झारखंड, मध्य प्रदेश, कलकत्ता, दिल्ली और पटना हाईकोर्ट्स ने ही अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा की है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि जीवन के अधिकार में स्वस्थ, स्वच्छ और सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार भी शामिल है। अदालत ने यह भी कहा कि केवल शौचालय बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उनका नियमित रखरखाव पूरे वर्ष होता रहे। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसी मूलभूत सुविधाओं के बिना राज्य खुद को कल्याणकारी राज्य नहीं कह सकता। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही तीन महत्वपूर्ण निर्देश दे चुका है। पहला, प्रत्येक हाईकोर्ट में एक विशेष समिति का गठन किया जाए जिसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ न्यायाधीश करें और जिसमें सरकारी अधिकारी, बार एसोसिएशन के सदस्य और आवश्यक कर्मचारी शामिल हों। दूसरा, यह समिति यह आकलन करे कि प्रतिदिन अदालत में कितने लोग आते हैं और उसी के अनुसार शौचालयों की संख्या तय की जाए। तीसरा, राज्य सरकारें इस उद्देश्य के लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराएं ताकि शौचालयों के निर्माण, सफाई और रखरखाव की व्यवस्था की जा सके।